श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी एक महान पुरुष के साथ-साथ एक महान लेखक और कवि भी थे।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरुँ
लौट कर आऊंगा, कुंच से क्यों डरूं।
आओ फिर से दिया जलायें....
आओ फिर से दिया जलायें, भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा, अंतरतम का नेह निचोड
बुझी हुई बाती सुलगायें
आओ फिर से दिया जलायें..
हम पड़ाव को समझें मजिल्, लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल्
वर्तमान के मोहजलों मे, आनें वाला कल न भुलाएं
आओ फिर से दिया जलायें...
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा, अपनों के बिधनों नें घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने, नौ दाधीच हाड़ियं गलायें
आओ फिर से दिया जलायें.. .. .
परिचय.... .. .. .
हिंदू तन मन हिंदू जीवन रगरग हिंदू मेरा परिचय
मैं शंकर् का वो क्रोधनाल कर सकता जग का क्षार क्षार
डमरू की वह प्रलय ध्वनि हूँ, जिसमे नाचत भीषण संहार।
रणचंडी की आत्रिप्त प्यास, मै दुर्गा का उन्मत्त हास।
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